आज की लक्ष्यहीन शिक्षा-प्रणाली, अध्यापन-पद्धति, भ्रष्ट शासन-तंत्र और जीवन के हासशील मूल्य, विद्यार्थी-समुदाय को किस प्रकार गुमराह और निर्वीर्य बना रहे हैं, इन सबका प्रभावी चित्रण इस उपन्यास में हुआ है। इसमें अच्छाई-बुराई के बीच, आशा-निराशा के बीच तथा कल्पना और यथार्थ के बीच, अनवरत संघर्ष करने वाले एक निर्धन विद्यार्थी का आत्मसंघर्ष भी है। इस विद्यार्थी का चरित्र-चित्रण अत्यंत जटिल होने पर भी इसे जीवंत बनाने में लेखक को सफलता मिली हे। सामाजिक प्रयोजन को दृष्टि में रखकर और युवा-मनोविज्ञान को गहरी समझ के साथ लिखा गया यह उपन्यास विद्यार्थी-वर्ग को आत्म-शोधन के लिए प्रेरित करेगा, इसमें संदेह नहीं है। इसके अलावा आज की हमारी शिक्षा-नीति में सुधार लाने का प्रयत्न करने वाले हमारे शिक्षाविदों के लिए विद्यार्थी-वर्ग में फैले असंतोष और नैराश्य को समझने में भी यह रचना उपयोगी सिद्ध होगी। यहाँ वस्तु और शिल्प के बीच संतुलन स्थापित करने में भी लेखक सफल हुआ है।.
श्री नवीन तेलुगु के प्रसिद्ध उपन्यासकार तथा कहानीकार हैं। अब तक इनके 23 उपन्यास और 50 से अधिक कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी कई रचनाएँ हिंदी, अंग्रेजी, तमिल और कन्नड़ में अनूदित हो चुकी हैं। अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए वे आंध्र प्रदेश साहित्य अकादमी के पुरस्कार तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के सीनियर फेलोशिप सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।
डाॅ. के. लीलावती, आन्ध्रा विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।