ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के दौरान पूरे देश से राजा और महाराजा 1911 के दिल्ली दरबार में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली में इकट्ठे हुए थे, और तब एक नई राजधानी का जन्म हुआ था, जिसका नाम बाद में ‘नई दिल्ली’ पड़ा। कुछ ही दिनों में रजवाड़ों ने इस नई औपनिवेशिक राजधानी में शानदार महल बनवा डाले, जैसे कि हैदराबाद हाउस, बड़ौदा हाउस, जयपुर हाउस, बीकानेर हाउस और पटियाला हाउस आदि।
ब्रिटिश सरकार ने रजवाड़ों को राजधानी की इतनी महँगी और मुख्य जमीन क्यों और कैसे आवंटित की? यहाँ निर्माण की शुरूआत कैसे हुई और किन वास्तुकारों ने इनमें वास्तुशिल्पीय डिज़ाइन बनाए? इनमें कौन रहा, और यहाँ कौन-कौन से समारोह आयोजित हुए? आज़ाद भारत में इन रियासतों के विलय के बाद दिल्ली के इन शाही महलों का क्या हुआ?
यह किताब इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए हर कहानी की गहराई में जाती है। यह दुर्लभ शोध, राजसी परिवारों से लिए गए साक्षात्कारों, और रजवाड़ों के निजी संग्रहों में मौजूद, आज से पहले कभी न छपने वाली तसवीरों के ज़रिए इतिहास का विवरण देती है।
नई दिल्ली के ये शाही महल शहरी विन्यास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन्हें एक सदी पहले जिस मक़सद से बनाया गया था, शायद उनके आज कोई मायने नहीं रह गए हैं। लेकिन वे एक विशिष्ट समय के वाचक हैं, जो किसी के भाग्य निर्माण की निरंतर प्रक्रिया का एक भाग थे।
शाही अंदाज़ में शानदार जुलूस, विशेष वरदी पहने, महलों की रक्षा करते गार्ड, रंग-बिरंगे, लहलहाते शाही ध्वज, मेहमानों का मन-बहलाती सैक्सोफोन की धुनें, और वाइन गिलासों के आपस में टकराने की आवाजें आपको अतीत में ले जाएँगी, हालाँकि आधुनिक नई दिल्ली का स्वरूप अब काफी बदल चुका है।
सुमंत भौमिक दिल्ली आने से पहले अपनी शुरुआती ज़िंदगी भागलपुर में बिताई थी। उन्होंने विज्ञान और साहित्य का अध्ययन किया। वे रवींद्रनाथ टैगोर और एमिली डिकिन्सन की कविताओं पर शोध कर चुके हैं। उनकी अनुवाद से संबंधित कई किताबें, शोध आलेख, लघु-कथाएँ तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निबंध भी प्रकाशित हो चुके हैं।
सेंट्रल विस्टा से प्रतिदिन अपने कार्यालय जाते हुए उनकी कल्पनाएँ उड़ान भरने लगती थीं, और वे उस दौर में पहुँच जाते थे जब राजा-महाराजा नई दिल्ली की इन सड़कों पर विचरण करते थे। दिल्ली उस समय औपनिवेशिक राजधानी थी। इसी कल्पना ने उन्हें प्रिंसेस पार्क के शाही महलों की कहानियों की ओर आकर्षित किया। इसी विषय में शोध के दौरान दिल्ली के इतिहास के प्रति उनकी रुचि और बढ़ती गई। मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन पर, मंडी हाउस इलाक़े के इतिहास को बयान करतीं जो पट्टिकाएँ लगी हुई हैं, उसमें उनका योगदान रहा है। सुमंत नई दिल्ली के शाही महलों के विषयों पर विद्वतजनों के समक्ष कई जगहों पर भाषण भी दे चुके हैं। दिल्ली का अतीत और वर्तमान इन्हें लगातार आकर्षित करता रहता है।
सुमंत को किताबों में विशेष रुचि है और वे लज़ीज़ भोजन व चाय के शौक़ीन हैं। वे दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहते हैं।
Translator बाल किशन बाली (एम. ए. राजनीति विज्ञान, डिप्लोमा हिंदी पत्रकारिता) लेखक, अनुवादक, गीतकार, व स्वतंत्र पत्रकार, हैं। इनकी लिखी और अनुवादित की गई डॉक्यूमेंट्रीज़ दूरदर्शन, टाॅपर, राज्यसभा टीवी और नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर प्रसारित हुई हैं। इसके अलावा ये क्षेत्रीय फ़िल्में और एल्बम बनाने में सक्रिय हैं।