प्रस्तुत पुस्तक गाँधी-दर्शन बी॰ए॰ (आनर्स), एम॰ए॰ (राजनीति) तथा सभी प्रकार की प्रतियोगिता परिक्षाओं के लिए लिखी गयी है। महात्मा गांधी बीसवीं सदी के महामानव, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के मसीहा, प्रगाढ़ देश प्रेमी, महान राष्ट्रीय नेता, राजनीतिज्ञ, विचारक, संत और श्रेष्ठ समाज सुधारक थे। गाँधी-दर्शन अध्यात्मवाद, नैतिकवाद, अनुदारवाद, उदारवाद, समाजवाद, साम्यवाद, अराजकतावाद तथा राष्ट्रवाद आदि के ताने-बाने से बना है। गाँधी-दर्शन पुस्तक पन्द्रह अध्यायों में विभक्त है। इसके अंतर्गत--गाँधी का जीवन, धार्मिक विचार, सत्य एवं अहिसा, सत्याग्रह, रामराज्य, व्यावहारिक राज्य, राष्ट्रवाद, अन्तर्राष्ट्रवाद, समाजवाद, साम्यवाद, सर्वोदय, मार्क्सवाद, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक विचार, गाँधी की आलोचना, गाँधी-दर्शन की प्रासंगिकता तथा गाँधी की देन, महत्व और प्रभाव जैसे विषयों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी है। अंत में, ग्रंथावली तथा प्रश्नावली-वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तरसहित समावेश किया गया है।
डॉ. नरेन्द्र चौधरी, डी.लिट., ने अपनी शिक्षा हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में उन दिनों में पूरी की जब पं. मदनमोहन मालवीय जीवित थे और डॉ. राधवृफष्णन उपवुफलपति थे। उन्होंने डी.लिट. की उपाधि सेन्ट एन्ड्रूज़ विश्वविद्यालय, यू.वेफ. से प्राप्त की। अपने ताऊजी की प्रेरणा से डॉ. चौध्री ने स्कूल के दिनों से ही लेख और कहानियां लिखनी शुरू कीं जो उस समय की अनेक पत्रिकाओं में छपती रहीं। तभी ताऊजी के साथ खलील जिब्रान की पुस्तक पागल का अनुवाद किया। तत्पश्चात अंग्रेज़ी में भी अनेक अंग्रेज़ी पत्रिकाओं वेफ लिए लिखते रहे। शिक्षा के समय में ही ‘सप्त सिन्धु प्रकाशन’ संस्था स्थापित की जिससे अनेक हिन्दी, अंग्रेज़ी पुस्तवेंफ प्रकाशित कीं। तभी अंग्रेज़ी पत्रिका लिट्रेरी वर्ल्ड और विश्वविख्यात पत्रिका हिचकॉक मिस्ट्री मैगजीन का एशियाई संस्करण प्रकाशित किया। तदोपरान्त सरकारी नौकरी कर ली और वहां रक्षा मंत्रालय से अंग्रेज़ी पत्रिका क्रिपटोस्क्रिप्ट का प्रकाशन किया। सरकार से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात कई अमरीकी विश्वविद्यालयों और समाज सेवी संस्थाओं से जुड़े रहे और शिक्षा-प्रचार और अनुसंधन की परियोजनाओं में कार्यरत रहे। पिछले दो दशकों में विदेशी और भारतीय शिक्षा संस्थानों वेफ बीच कड़ी के रूप में शिक्षा-प्रसार और अनुसंधनों के लिये परामर्शदाता रहे। इस कार्य के लिये लगातार विदेशों में रहे और विश्व भ्रमण भी करने पड़े। अभी भी वर्ष में दो माह यूरोप और अमेरिका में रहते हैं। जीवन के अन्तिम पड़ाव में अब समय मिला तो जिब्रान के साहित्य पर बचा हुआ कार्य कर रहे हैं।