About the Book ‘विशिषà¥à¤Ÿ रचनाà¤à¤‚: चौधरी चरण सिंह’ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के à¤à¥‚तपूरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ शà¥à¤°à¥€ चरण सिंह दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ १९३३ और १९८५ के बीच लिखित २२ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ लेखों और à¤à¤¾à¤·à¤£à¥‹à¤‚ का संगà¥à¤°à¤¹ है। इस पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से आज का पाठक वरà¥à¤— जान सकेगा कि मौजूदा समय की चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ न तो नई हैं और न ही समाधानहीन। इनसे निपटने के लिठà¤à¤• मन-सोच अथवा जिगरा चाहिà¤, जो निशà¥à¤šà¤¯ ही धरा-पà¥à¤¤à¥à¤° चरण सिंह में था। उनका लेखन उस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¸à¥à¤¤à¤‚ठकी तरह है जो समà¥à¤¦à¥à¤° में à¤à¤Ÿà¤•à¥‡ हà¥à¤ जहाजों को किनारे तक आने का रासà¥à¤¤à¤¾ दिखाता है। उनके लेखन के आलोक में हम मौजूदा चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सही परिपà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ में न केवल समठसकते हैं अपितॠउनका समाधान à¤à¥€ पा सकते हैं। इन लेखों में उनकी राजनीतिक, सामाजिक और आरà¥à¤¥à¤¿à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿ के दरà¥à¤¶à¤¨ होते हैं। विषयवसà¥à¤¤à¥ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से इन लेखों को सामाजिक लेखन, आरà¥à¤¥à¤¿à¤• लेखन, राजनीतिक लेखन à¤à¤µà¤‚ उपसंहार - चार खणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ में विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ किया गया है।<br>
चौधरी चरण सिंह की अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• अंतशà¥à¤šà¥‡à¤¤à¤¨à¤¾ और राजनीतिक मेधा महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ à¤à¤µà¤‚ महातà¥à¤®à¤¾ गांधी से अनà¥à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ रही, तो सरदार पटेल उनके नायक रहे। इन विà¤à¥‚तियों पर चौधरी साहब ने अपने विचार लेखों में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किये हैं। जाति-पà¥à¤°à¤¥à¤¾, आरकà¥à¤·à¤£, जनसंखà¥à¤¯à¤¾ नियंतà¥à¤°à¤£, राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤à¤¾à¤·à¤¾ जैसे सामाजिक मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤‚ के साथ ही शिषà¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° जैसे विरल विषय पर à¤à¥€ दो. लेख खणà¥à¤¡ à¤à¤•: सामाजिक लेखन में दिये गये हैं।<br>
चौधरी साहब à¤à¤¾à¤°à¤¤ की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ का मूल आधार कृषि, हथकरघा और गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ को मानते थे। उनकी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ में गà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ ही वह नियामक ततà¥à¤µ रहा जिसे देकर देश को आरà¥à¤¥à¤¿à¤• रूप से सशकà¥à¤¤ बनाया जा सकता है, साथ ही बेरोजगारी जी तिवा सना का à¤à¥€ दूर किया जा सकता है। उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में à¤à¥‚मि समà¥à¤¬à¤‚धी सà¥à¤§à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ और जमींदारी समापà¥à¤¤ करने को लेकर चौधरी चरण सिंह पर धनी किसानों के पकà¥à¤·à¤§à¤° होने के आरोप विरोधियों ने लगाये। उनका उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बेहद तारà¥à¤•à¤¿à¤• ढंग से उतà¥à¤¤à¤° दिया है। गांव-किसान और खेती के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उपेकà¥à¤·à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤£ नीतियां à¤à¤µà¤‚ काले धन की समसà¥à¤¯à¤¾ जैसे तथा उपरोकà¥à¤¤ विषयों पर केनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¤ लेख खणà¥à¤¡ दो: आरà¥à¤¥à¤¿à¤• लेखन के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त दिये गये हैं।
खणà¥à¤¡ तीन: राजनीतिक लेखन के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त à¤à¤¾à¤°à¤¤ की लमà¥à¤¬à¥€ गà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ के मूल कारणों का विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£, गांधी-चिंतन, देश में पहली गैर-कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥€ जनता पारà¥à¤Ÿà¥€ की सरकार की आधारà¤à¥‚त नीतियां, देश विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ माया तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी कांड का समाजशासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£, à¤à¤¾à¤·à¤¾ आधारित राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के खतरे आदि मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤‚ के अलावा उनके नायक सरदार पटेल की सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ पर आधारित लेख हैं। इसी खणà¥à¤¡ में चौधरी साहब के à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• महतà¥à¤µ के दो à¤à¤¾à¤·à¤£ à¤à¥€ संकलित हैं, जो लोकशाही पर संकट और राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ विघटन के खतरों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ सचेत करते हैं।<br>
अंतिम खणà¥à¤¡ चार: उपसंहार है, जिसमें चौधरी साहब ने राजनीति, समाज नीति और देश से समà¥à¤¬à¤‚धित अधिकतर मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤‚ पर संकà¥à¤·à¥‡à¤ª में अपने विचार पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किये हैं।