राष्ट्र-राज्य के काल में नागरिकता से जुड़े आयामों पर एक ठोस समझ की ज़रूरत हर नागरिक के लिए आवश्यक है। ऑक्सफ़ोर्ड इंडिया की ये नवीन प्रस्तुति इस विषय पर हिन्दी भाषा में एक अदद पुस्तक की कमी को दूर करती है। लेख़क माधव ख़ोसला की विवेचनात्मक दृष्टि ने संविधान के मूल स्तंभों की बनावट को समझाने में अहम् भूमिका निभाती है। क़ानूनी शब्दावली तथा नियमों के ताने-बाने से बुना संविधान आम जन की समझ के लिए दुर्लभ साबित होता है। ये पुस्तक इस उलझन से निजात दिलाती है। कई उदाहरणों के द्वारा ये संविधान के प्रति हमारी सैद्धांतिक तथा व्यवहारिक समझ को पुख्ता बनाती है। इस के पठन से हम एक नागरिक के तौर पर अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों के प्रति समझ बनाने में सफ़ल होते हैं। इस पुस्तक से साक्षात्कार हमें भारतीय राष्ट्र के वृहद् ख़ाका तथा आयामों की सरस यात्रा पर ले जाता है।English TranslationGiving identity to over a billion people, the Indian Constitution is one of the world's great political texts. Drafted over six decades ago, its endurance and operation have fascinated and surprised many. In this short introduction, Madhav Khosla brings to light its many features, aspirations and controversies. How does the Constitution separate power between different political actors? What form of citizenship does it embrace? And how can it change? In answering questions such as these, Khosla unravels the document's remarkable and challenging journey, inviting readers to reflect upon the theory and practice of constitutionalism in the world's largest democracy. This book is the Hindi translation of the English edition.
माधव ख़ोसला, हॉवर्ड सोसाइटी ऑफ़ फेलोज में जूनियर फेलो के पद पर कार्यरत हैं।
English Translation
Madhav Khosla, PhD candidate in political theory at Harvard University.