प्रस्तुत पुस्तक रीवा के संगीत के महान संस्थापकों तथा उनकी संगीत शैली पर प्रकाश डालती है। रीवा की संगीत परंपरा का बहुत विशेष स्थान रहा है। आज भी रीवा के मंदिर प्रामाणिक रूप से विद्यमान हैं, जिनमें संगीत की साधना की जाती थी। ऐसा माना जाता है कि संगीत में घराने की शुरुआत संगीत सम्राट तानसेन द्वारा हुई। घरानेदार शिक्षण प्रणाली में तानसेन के वंशजों द्वारा संगीत की जो साधना विकसित की गयी वह अभी तक चली आ रही है। संगीत सम्राट तानसेन जैसे संगीतज्ञ ने रीवा में संगीत की सेवा की। अध्ययन व खोज के बाद पता चला कि रीवा घराना रीवा सेनिया घराने के नाम से प्रसिद्ध था। तानसेन की वंश परंपरा में पुत्र वंश, पुत्री वंश और शागिर्दों ने रीवा से लेकर सारे भारत में संगीत को विस्तारित किया।
रीवा में संगीत शिक्षा परंपरा 19वीं शताब्दी के प्रथम चरण तक राजाश्रय के माध्यम से चलती रही। यहाँ के उस्ताद ने अन्य स्थानों में जाकर संगीत की शिक्षा का विकास किया जो रीवा सेनिया घराने के नाम से तंत्री वादन, ध्रुपद गायन, ख्याल गायन के रूप में विकसित हुआ। महाराजा विश्वनाथ सिंह के समय में बड़े मुहम्मद खान ग्वालियर छोड़ रीवा आ गए थे। बड़े मुहम्मद खान के बच्चों ने रीवा के सांगीतिक वातावरण का भरपूर सदुपयोग किया और भारत के विभिन्न स्थानों में जाकर संगीत की शिक्षा शैली को विस्तारित करने में सहयोग किया।