भारत के शास्त्रीय नृत्यः नवजागरण और उसके बाद नाम की पुस्तक का यह अनुवाद भी मूल पुस्तक की तरह ही, स्वतंत्रता के बाद भारतीय शास्त्रीय नृत्य-रूपों के बनने-सँवरने की कथा से लैस है। भरतनाट्यम, कथक, कुचिपुडी, कथकली, मणिपुरी, मोहिनीआट्टम, ओडिशी और सत्रिय का इसमें सघन और सम्यक परिचय, ख्यात नृत्य-समीक्षक लीला वेंकटरमन ने प्रस्तुत किया है, जिसमें समकालीन नृत्य-परिदृष्य भी बहुत अच्छी तरह उभरकर सामने आया है। ब्रिटिश राज के अंतिम कुछ वर्षों और उसके बाद, मंदिरों और दरबारों से शास्त्रीय नृत्य-रूपों का एक नया रूपांतरण घटित हुआ, जिसमें स्वतंत्रता आंदोलन की भी एक विशिष्ट भूमिका थी। अन्य सभी क्षेत्रों की तरह नृत्य-रूपों में भी एक ‘स्वतंत्र’ राष्ट्रीय पहचान का आग्रह बढ़ रहा था, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसी नयी पहचान के साथ ही उपस्थित होने की आकांक्षा बलवती हो रही थी। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो पिछले कोई साठ वर्षों में भारतीय शास्त्रीय नृत्य-रूपों की प्रस्तुतियों में एक मूलभूत परिवर्तन हुआ है, कुछ स्वेच्छा से और कुछ आकस्मिक ढंग से। इन वर्षों पर एक नजर डालते ही यह अनुभव होता है कि परिवर्तन की यह प्रक्रिया रूकी नहीं है - पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसमें कुछ जुड़ता ही जा रहा है। हमारे नृत्यकार और संगीतकार एक समृद्ध परम्परा का अपने-अपने ढंग से एक पुनराविष्कार करते ही जा रहे हैं। पुस्तक इस प्रक्रिया पर भी पर्याप्त रोशनी डालती है। पुस्तक बहुतेरे आवश्यक चित्रों से सुसज्जित है, और नृत्य के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हुई, प्रायोजन तथा संरक्षण जैसे प्रश्नों पर भी विचार करती हैं। प्रशिक्षण के सवालों, और गुरु-शिष्य परंपरा की स्थिति-परिस्थिति के अलावा नृत्य के समकालीन मूल्य बोध को रेखांकित करती है। सभी शास्त्रीय नृत्य रूपों को उनकी विविधता में समेटती हुई यह कलाकारों, इतिहासकारों, नृत्य के प्रशिक्षुओं गुरूओं समेत उन सभी के लिए अत्यंत उपयोगी है जो भारतीय संस्कृति के इस मनोहारी जगत का अवगाहन करना चाहते हैं।INDIAN CLASSICAL DANCE: The Renaissance and Beyond traces the journey of the evolution of Indian classical dance since the years of Independence. Covering the eight classical dance forms of India – Bharatanatyam, Kathak, Kuchipudi, Kathakali, Manipuri, Mohiniattam, Odissi and Sattriya – Leela Venkataraman seamlessly weaves together a historical perspective with the contemporary scenario. Stripped of their association with the temple and the court, classical dance traditions in India went through a period of unprecedented change in the period marking the last few years of British rule and thereafter. From becoming part of the nationalist struggle when India was trying to rediscover its lost identity, to sharing the international stage today with dance forms from all over the world, the last sixty-six years have seen many changes in perspective and presentation of Indian Classical Dance – some intentional, others involuntary. While looking at these years closely and their impact on dance forms, one realises that this is a phase in an ongoing process, with each new generation of dancers and musicians adding to an already rich tapestry of tradition. The book is beautifully illustrated, and multi-faceted, dealing with various aspects of dance, including sponsorship and patronage, the teacher/disciple relationship and the contemporary classical dialectic. Unique in its vast range of covering all the classical forms, Indian Classical Dance is a must read for dancers and dance historians, students and teachers of dance and those interested in this fascinating field of Indian culture.
लीला वेंकटरमन ने वर्ष 1980 से नृत्य पर लिखने की शुरूआत की थी। नृत्य संबंधी कार्य एवं सांस्कृतिक जगत को उल्लेखनीय योगदान के लिए इन्हें संगीत नाटक अकादमी के प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा भी जा चुका है। इनके द्वारा चिल्ड्रेंस बुक ट्रस्ट के लिए ‘इंडियन क्लासिकल डांसेज’ पर लिखी गयी किताब भी अत्यंत उल्लेखनीय है। इन्होंने कई पुस्तके भी लिखी हैं जिनमें ट्रैडिशन इन ट्रांजिशन, स्टेप बाई-स्टेप भरतनाट्यम, अ डांसिंग फिनोमिना-बिरजू महाराज शामिल हैं। इन्होंने बतौर नृत्य-समीक्षक द नेशनल हेराल्ड एवं द पैटियट के लिए कार्य भी किया है।Leela Venkataraman’s career as a writer on Dance began in 1980 as dance critic for The National Herald and later the Patriot. Associated with the dailyThe Hindu for over thirty years, her Friday Review column has earned her a wide reputation for her incisive commentary on the dance scene. Widely travelled, she has been a regular participant in dance seminars in India and abroad. A prolific writer and regular contributor to dance journals like Nartanam andSruti, she is the author of books Tradition in Transition, Step by Step Bharatanatyam, A Dancing Phenomenon – Birju Maharaj, and a book commissioned by the Children’s Book Trust on Indian Classical Dances. Her work and contribution have earned her the prestigious Sangeet Natak Akademi Award. TRANSLATORप्रयाग शुक्ल का जन्म 28 मई, 1940 कोलकाता में हुअा। इन्होने कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक किया है। वे ‘कल्पना’, ‘दिनमान’ और ‘नवभारत टाइम्स’ के संपादक मंडल में रहे हैं। साथ ही ललित कला अकादमी की पत्रिका ‘समकालीन कला’ के अतिथि संपादक, और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका, ‘रंग प्रसंग’ तथा संगीत नाटक अकादमी की पत्रिका ‘संगना’ के संपादक भी रहे हैं। वे कुशल कवि, कथाकार, कला-समीक्षक, अनुवादक एवं संपादक रहें हैं। इनकी अबतक लगभग पचास पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैंPrayag Shukla was born on 28 May 1940, in Kolkata. He graduated from the University of Calcutta. He has been in the editorial panel of Kalpana, Dinaman and Navbharat Times. He has also been the editor of Lalit Kala Akademi's magazine Contemporary Arts, editor of National School of Drama’s magazine Rang Prasang and the Sangeet Natak Akademi’s magazine Sangna. He is a skilled poet, story writer, art critic, translator and editor. He has published around 50 books till date.