Phasalon Mein Poshak Tatvon Ka Prabandhan Evam Paryavaran Paddhati
Ships in 1-2 Days
Free Shipping on orders above Rs. 1000
New Year Offer - Use Code ATLANTIC10 at Checkout for additional 10% OFF
Ships in 1-2 Days
Free Shipping on orders above Rs. 1000
New Year Offer - Use Code ATLANTIC10 at Checkout for additional 10% OFF
फसलों में पोषक तत्वों का प्रबंधन एवं पर्यावरण पद्धति, कृषि एवं पर्यावरण रसायन विज्ञान (Agriculture and ecological Chemistry) पर आधारित पेड़-पौधों एवं फसलों के प्राकृतिक क्रिया-कलाप, रहन-सहन, पोषण एवं आधुनिक सभ्यता के पर्यावरण के साथ छेड़-छाड़ द्वारा होने वाले दुष्प्रभाव पर वैज्ञानिक विश्लेषण की प्रस्तुति है। इस कृति के सहारे आमजनों को पेड़-पौधों के प्राकृतिक क्रिया-कलाप, पोषण क्रिया, पोषक तत्वों के महत्व, विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व, इनके रासायनिक खाद, कीटनाशक एवं कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभावों से परिचय कराने की कोशिश की गई है। पेड़-पौधे हमारे लिए भोजन उपलब्ध करने के साथ-साथ वायुमण्डल को भी शुद्ध करते हैं। अतः इनके पोषण, अच्छी वृद्धि एवं विस्तार पर विशेष बल दिया गया है। मिट्टी, पेड़-पौधों का सिर्फ आधार ही नहीं होती, बल्कि उनको जल एवं जरूरी पोषक तत्व भी उपलब्ध कराती है। अतः मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने एवं बनाये रखने के प्राकृतिक एवं पर्यावरण सम्मत आचरण करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों के रासायनिक खाद एवं मिट्टी में पड़ने वाले उनके प्रभावों का रासायनिक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है ताकि आमजन रासायनिक खादों के प्रयोग पर विवेकपूर्ण आचरण कर सकें। इससे मिट्टी की उर्वरा, भौतिक रासायनिक गुण एवं सूक्ष्म जीवियों की संख्या प्राकृतिक तौर पर बनी रहेगी। मिट्टी की उर्वरा अपने में निहित जैविक पदार्थ या जैविक खाद की मात्र पर निर्भर करती है। अतः अपने आस-पास सहज उपलब्ध जैविक पदार्थों से जैविक खाद तैयार करने, जैविक पदार्थों की खनिजीकरण प्रक्रिया, खनिजीकरण की विभिन्न अवस्थाओं का रासायनिक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है ताकि मिट्टी में उनके सही प्रयोग से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके एवं रासायनिक खाद के प्रयोग से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सके। कीटनाशकों, कवक नाशकों, खरपतवार नाशकों के अत्याधिक प्रयोग से हमारे स्वास्थ्य, मिट्टी के प्राकृतिक भौतिक-रासायनिक गुण, जैविक (सूक्ष्म जीवियों के) क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं, पर्यावरण आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः वायरस, बैक्टेरिया, कवक एवं कीट-पतंगों की रोकथाम के लिए प्राकृतिक उपायों एवं प्रतिजीवियों का परिचय दिये जाने की कोशिश की गई है। वर्तमान समय में जीवाष्म ईंधन के प्रयोग में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। इसके विपरीत वनों का संकुचन जारी है। फलस्वरूप, वायुमण्डल में विभिन्न गैसों का आदर्श संगठन असंतुलित हो गया है। वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड गैस की उपस्थित मात्र खतरे के निशान को पार कर चुकी है। इससे मनुष्य जाति एवं अन्य सभी जीवित प्राणियों के संहार का खतरा सिर पर मंडरा रहा है। इन सबसे निपटने के लिए वनों के विकास एवं विस्तार पर चर्चा की गई है।