Saapekshik Vishyanukramnika: (Relative Subject Index [With Decimal Classification])
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हिंदी पुस्तकों का वर्गीकरण करने वालों के लिए सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि सभी वर्गीकरण पद्धतियाँ अंग्रेजी में हैं। अतः हिंदी पुस्तकों, विशेषकर साहित्येतर विषयों की पुस्तकों, का वर्गीकरण करते समय वे पहले यह जानना चाहते हैं कि पुस्तक का विषय क्या है। पुस्तक का विषय जानने के लिए जब वे पुस्तक की विषय सूची, भूमिका देखते हैं तो प्रायः पाते हैं कि उस विषय से सम्बंधित तकनीकी शब्द अंगेजी में दिया हुआ है। अतः वे उसका हिंदी पर्यायवाची शब्द जानने के लिए शब्दकोश की सहायता लेते हैं। यदि पुस्तक में वैज्ञानिक, तकनीकी या साहित्येतर विषय का नाम हिंदी में दिया रहता है, तो उसका वर्गीकरण करते समय उन्हें पहले यह जानना होता है कि उसका अंग्रेजी नाम क्या है, क्योंकि सभी वर्गीकरण सारणियाँ अंग्रेजी में ही होती हैं। इस प्रकार के कार्य के लिए यह पुस्तक बहुत सहायक होगी, क्योंकि इसमें हिंदी में विषयों के नाम और उनके वर्गीकरण क्रमांक दिए गए हैं। इस पुस्तक की सहायता से वर्गीकरण करने में समय तो बचेगा ही, बार-बार शब्दकोश देखने और वर्गीकरण पद्धति की सारणी में सही या उपयुक्त क्रमांक खोजने के झंझट से भी छुट्टी मिलेगी। पुस्तक में कुछ कठिन या अप्रचलित शब्दों के अंग्रेजी पर्याय भी दे दिए गए हैं, जिससे सही वर्गीकरण क्रमांक समझने में आसानी होगी। जहाँ तक संभव हो सका है, अधिक विषय एवं उनके उप-विषय देने का प्रयास किया गया है। इन विषयों के वर्गीकरण क्रमांक देखकर इसी प्रकार के अन्य विषयों, उप-विषयों आदि के क्रमांक बनाने में भी सुविधा होगी। हिंदी माध्यम में काम करने वाले पुस्तकालयकर्मियों तथा पुस्तकालय का उपयोग करने वालों के लिए भी यह पुस्तक उपयोगी रहेगी।.
महेंद्र राजा जैन, एम.ए., डिप. लिब-एस.सी., फेलो आफ द लाइब्रेरी एसोसिएशन, लंदन, भारत के अतिरिक्त ब्रिटेन, आयरलैंड, तनजानिया, और जाम्बिया के सार्वजनिक एवं विश्वविद्यालयीन पुस्तकालयों में 27 वर्ष तक कार्यरत रहे हैं। आप 1989 में इंडियन एक्सप्रेस दिल्ली के पुस्तकालयाध्यक्ष पद से सेवा निवृत्त हुए। आपने 'हिंदी पुस्तकों का वर्गीकरण' प्रोजेक्ट पर कौंसिल ऑन लाइब्रेरी रिसोर्सेज, वाशिंगटन एवं लाइब्रेरी एसोसिएशन, लंदन से दो वर्षों तक काम किया। आप सात वर्षों तक लंदन के लाइब्रेरी एसोसिएशन की फेलोशिप परीक्षा के वरिष्ठ परीक्षक रहे। 'इंडिया हू इज हू' तथा 'हू इज हू इन लाइब्रेरियनशिप' (लंदन 1971) में आपका नाम शामिल है। हिंदी की प्रायः सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में, आपके अब तक 500 से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। आपने हिंदी विश्वकोश (नागरी प्रचरिणी सभा, वाराणसी) के लिए लंदन से कई लेख लिखे। लंदन से वाराणसी के दैनिक, आज के लिए आठ वर्ष तक साप्ताहिक 'लंदन की चिट्ठी' तथा दारेस्सलाम (तनजानिया) से चार वर्षों तक 'पूर्वी अफ्रीका की चिट्ठी' तथा दोनों जगहों से मासिक 'विदेश की साहित्यिक डायरी' का लेखन आपने किया। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में, वाराणसी से लंदन (यात्रा वर्णन); अंग्रेज अपने मुल्क में; साहित्य के नये संदर्भ विराम चिह्नः क्यों और कैसे? और नामवर विचार कोश शामिल हैं।