Nirmala
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प्रेमचंद द्वारा रचित निर्मला उपन्यास एक पंद्रह वर्षीय लड़की जो बनारस के एक मध्यमवर्गीय परिवार से है, इस पर आधारित है। इस उपन्यास के जरिए प्रेमचंद ने समाज की नारी के प्रति सोच, दहेज प्रथाए नारी की पुरुष पर निर्भरता और अनमोल विवाह जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर किया है।
जो लड़की पहले अपने पिता के जीवित रहते एक अच्छे और समृद्ध परिवार में विवाह के लिए तैयार हो रही थी, वही पिता की मृत्यु के बाद दहेज, समाज की कुरीतियों और कठिन परिस्थितियों के कारण अपनी पूरी जिंदगी एक अधेड़ व्यक्ति के साथ बिताने के लिए विवश हो जाती है, जो उसके पिता की उम्र का है। यही से निर्मला की खुशहाल जिंदगी में एक दुखद त्रासदी की शुरुआत होती है।
यह उपन्यास महिला-पुरुष के संबंधों और एक महिला के आंतरिक संघर्षो को सरलता और गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है और अंत में गहरा सन्नाटा छोड़ जाता है।
मुंशी प्रेमचंद हिंदी के महान लेखक और उपन्यासकार थे, जिन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास लामही गाँव में हुआ। प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उन्होंने समाज की कुरीतियों, आर्थिक असमानता, जातिवाद और शोषण को अपनी रचनाओं में प्रमुखता से उकेरा।
प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों और कहानियों के माध्यम से समाज में सुधार और जागरूकता लाने का प्रयास किया। उनके प्रमुख उपन्यासों में गोदान, गबन, सेवासदन, निर्मला, और कायाकल्प शामिल हैं। उनकी कहानियाँ जैसे पूस की रात,ईदगाह और नमक का दरोगा मानवीय संवेदनाओं और यथार्थ का अद्भुत चित्रण करती हैं।
उन्होंने साहित्य को एक नया दृष्टिकोण दिया और उसे आम जनमानस से जोड़ा। 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं।