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Sarvajanik Arthvighyan: Sidhant Aivam Paryog

by Janak Raj Gupta , Bimla Mahajan
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Book cover type: Hardcover
  • ISBN13: 9788126917631
  • Binding: Hardcover
  • Subject: Economics
  • Publisher: Atlantic Publishers & Distributors (P) Ltd
  • Publisher Imprint: Atlantic
  • Publication Date:
  • Pages: 456
  • Original Price: INR 995.0
  • Language: Hindi
  • Edition: N/A
  • Item Weight: 470 grams
  • BISAC Subject(s): Economics / General

लोकहित में सरकार का महत्व एवं इसकी आर्थिक, विशेष रूप से वित्तीय क्रियाएं निरन्तर बढ़ रहे हैं। सरकार की वित्तीय प्रणालियों एवं सरकारी संस्थाओं का योगदान लगातार बढ़ रहा है। यद्यपि आज के युग में आर्थिक विकास के लिए निजी क्षेत्र अर्थात् मंडी शक्तियों (मांग एवं पूर्ति) का योगदान भी महत्वपूर्ण है, तथापि मंडी शक्तियों की असफलता के कारण तथा अन्य सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सरकार की भूमिका निरन्तर और महत्वपूर्ण होती जा रही है। सार्वजनिक अर्थविज्ञान (Public Economics) सार्वजनिक वित्त (Public Finance) का ही विस्तृत रूप है। सार्वजनिक वित्त में हम कर, सरकारी व्यय प्रणाली, ट्टण प्रणाली आदि, जो सरकारी बजट के अर्न्तगत हैं, मात्रा का ही अध्ययन करते हैं, परन्तु सार्वजनिक अर्थविज्ञान में हम इनके अलावा बजट के अन्य पहलुओं पर भी विचार करते हैं। किसी देश के कुल संसाधनों को सरकारी एवं निजी वस्तुओं के उत्पादन के लिए किस प्रकार विभाजित करना है, लोकतांत्रिक प्रणाली में बजट बनाने के लिए किस राजनैतिक प्रक्रिया को अपनाना है, यह सब भी सार्वजनिक अर्थविज्ञान के अध्ययन के विषय हैं। सार्वजनिक अर्थविज्ञान की बढ़ती हुई भूमिका के कारण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission) ने इस विषय को स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए अनिवार्य विषय घोषित कर दिया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए ही इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों का विभाजन किया गया है। आशा है यह पुस्तक न केवल विद्यार्थियों के लिए वरन् सरकारी नीतियों से सम्बन्धित वर्गों के लिए भी लाभदायक होगी।

जनक राज गुप्ता, अवकाश प्राप्त सभ्य (Emeritus Fellow) पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना और पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में अनेक अनुसंधान, शिक्षण व प्रशासनिक पदों पर कार्यरत रहे हैं। उनके रुचि क्षेत्रों में कृषि अर्थविज्ञान और सार्वजनिक अर्थशास्त्र हैं जिन पर उनके कई लेख प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छप चुके हैं। इन्हीं विषयों पर उनके विनिबंध (monographs) भी प्रकाशित हो चुके हैं। एम.फिल. के कई एक छात्रों की निगरानी के अलावा उन्होंने लगभग एक दर्जन पीएच.डी. के छात्रों को निर्देशित किया है। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में Burden of Tax on Punjab: An Inter-Sector and Inter-Class Analysis; Economic Aspects of Sales Tax; Fiscal Deficit of States in India (ed.); Federal Transfers and Inter-State Disparities in India; Privatization in Urban Local Bodies in Punjab; Public Economics in India and Indian Economy (2 vols.) आदि शामिल हैं। श्रीमती बिमला महाजन सरकारी महिला कॉलेज, रतलाम (म.प्र.) में पूर्व व्याख्याता रही हैं। इनके कई लेख सरिता, दैनिक भास्कर (मधुरिमा) आदि में प्रकाशित हो चुके हैं। आजकल वह अपनी विभिन्न कहानियों का संग्रह तैयार करने में व्यस्त हैं।

  • प्रस्तावना: प्रजातंत्र की विविधता
  • 1. सार्वजनिक अर्थविज्ञान की प्रकृति एवं क्षेत्र: छंदनात्मक अध्ययन व नीतिकता में विशेषता
  • 2. सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में सरकार का योगदान: नीतिकता और नियमितता में विवेकपूर्ण तरीके से योगदान
  • 3. सार्वजनिक चयन एवं सरकारी नीति की संगतता: नीतिकता बुनियादी तत्वों में संगति व सामंजस्य
  • 4. सरकारी खर्च: नीतिकता मानवतावादी
  • 5. कराधान: ज्ञानवर्धक
  • 6. सार्वजनिक ट्रांसपेरेंसी: नीतिकता की जड़
  • 7. वित्तीय नीति: सामर्थ्यवादी
  • 8. संघी वित्त व्यवस्था: सामर्थ्यवादी और न्यायपूर्ण
  • 9. भारतीय सार्वजनिक वित्त: प्रकार्य नीतिकता और विकासमूलक
  • 10. स्थानीय स्वशासित संस्थाएं: विकास और स्वायत्तता में
  • ग्रंथ सूची: विश्वसनीयता की लड़ाई

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