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Aadhunik Sahitya Aur Sahityekaar

by Ganpati Chandra Gupt
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Book cover type: Paperback
  • ISBN13: 9788126917181
  • Binding: Paperback
  • Subject: Hindi Literature
  • Publisher: Atlantic Publishers & Distributors (P) Ltd
  • Publisher Imprint: Atlantic
  • Publication Date:
  • Pages: 288
  • Original Price: INR 80.0
  • Language: Hindi
  • Edition: N/A
  • Item Weight: 160 grams
  • BISAC Subject(s): N/A

प्रस्तुत पुस्तक में पच्चीस लेख या निबन्ध संगृहीत हैं, जिनमें आधुनिक युग वेफ प्रमुख साहित्यकारों एवं उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियों पर निजी दृष्टिकोण से विचार किया गया है। इसवेफ अन्तर्गत भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर रामधारी सिंह फ्दिनकरय् तक आधुनिक युग वेफ प्रतिनिधि कवियों एव प्रमुख नाटककारों, उपन्यासकारों, समीक्षकों आदि का प्रतिनिधित्व हो गया है। इसी प्रकार फ्कामायनीय्, फ्उर्वशीय्, फ्गोदानय्, फ्मृगनयनीय् जैसी प्रमुख रचनाओं पर भी इसमें लेख हैं। ......अतः यहाँ इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि प्रस्तुत कृति में हिन्दी साहित्य वेफ आधुनिक काल की कतिपय महान विभूतियों एवं प्रमुख रचनाओं वेफ वुफछ विशिष्ट पक्षों पर ही विचार हो सका है। प्रस्तुत कृति वेफ अन्तर्गत विभिन्न साहित्यकारों या उनकी रचनाओं वेफ विभिन्न पक्षों का विवेचन-विश्लेषण करते समय तद्विषयक परम्परागत मतों एवं अवधारणाओं का उल्लेख यथोचित रूप में किया गया है, किन्तु साथ ही लेखक ने अपनी दृष्टि एवं निजी अनुभूति को भी आधार बनाया है। अतः इसमें लेखक वेफ निष्कर्ष मौलिक हैं। अस्तु, इसमें कोई सन्देह नहीं कि इसवेफ द्वारा आधुनिक युग वेफ प्रमुख साहित्यकारों एवं रचनाओं वेफ अध्ययन, विवेचन एवं विश्लेषण की दृष्टि से प्रस्तुत कृति अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।

डॉ॰ गणपतिचन्द्र गुप्त (1928 ई॰) हिन्दी के यशस्वी साहित्यकार एवं समालोचक हैं। आपने क्रमशः पंजाब विश्वविद्यालय में प्रथम श्रेणी में एम॰ए॰ (हिन्दी), पी-एच॰डी॰ एवं डी॰ लिट्॰ की उपाधियाँ प्राप्त कीं। उन्होंने 1964 से 1978 ई॰ तक विभिन्न विश्वविद्यालयों में हिन्दी साहित्य का प्राध्यापन कार्य किया। 1974 ई॰ में पंजाब विश्वविद्यालय-स्नातकोत्तर अध्ययन केन्द्र, रोहतक के निदेशक पद पर प्रतिष्ठित हुए। तदनन्तर 1976 से 1978 ई॰ तक महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक में कुलानुशासक, अधिष्ठाता, भाषा-संकाय आदि पदों पर कार्य किया। 1978 ई॰ से 1984 तक हिमालय प्रदेश-विश्वविद्यालय, शिमला एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र में क्रमशः कुलपति के रूप में कार्य किया।

  • प्रथम खण्ड: पद्य-साहित्य
  • 1. आधुनिकता और हिन्दी साहित्य
  • 2. आधुनिक युग के प्रवर्तक महाकवि भारतेन्दु हरिश्चंद्र
  • 3. परम्परा और युग-धर्म के संयोजक: मैथिलीशरण गुप्त
  • 4. महाकवि जयशंकर प्रसाद
  • 5. ‘प्रेम-पथिक’: एक विवेचन
  • 6. प्रसाद का ‘आँसू’: एक विश्लेषण
  • 7. ‘कामायनी’: विशेष अध्ययन
  • 8. ‘कामायनी’ का रूपक-तत्व
  • 9. प्रकृति के कवि सुमित्रानन्दन पंत
  • 10. महादेवी के काव्य में छायावाद
  • 11. महादेवी-काव्य में वेदना-भाव
  • 12. ‘उर्वशी’: प्रतीक-योजना एवं प्रतिपाद्य
  • द्वितीय खण्ड: गद्य-साहित्य
  • 13. भारतेन्दु हरिश्चंद्र: नाटककार के रूप में
  • 14. जयशंकर प्रसाद: नाटककार के रूप में
  • 15. प्रेमचंद: उपन्यासकार के रूप में
  • 16. प्रेमचंद का गोदान: सामान्य विवेचन
  • 17. प्रेमचंद का गोदान: विभिन्न पक्ष
  • 18. उपन्यासकार इलाचन्द्र जोशी का ‘संन्यासी’
  • 19. वृन्दावनलाल वर्मा की ‘मृगनयनी’: तीन पक्ष
  • 20. आचार्य रामचंद्र शुक्ल: समीक्षक के रूप में
  • 21. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी: इतिहासकार के रूप में
  • 22. डॉ. नगेन्द्र का साहित्य-शास्त्र और सामान्यीकरण में योगदान
  • 23. आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी का व्यावहारिक समीक्षा में योगदान
  • 24. डॉ. इन्द्रनाथ मदान: व्यक्ति और आलोचक के रूप में
  • 25. नाट्य-समीक्षा और भारती मानदण्ड और नाटककार अश्क

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