Devdas
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‘देवदास’ शरतचन्द्र का पहला उपन्यास है। लिखे जाने के सोलह साल बाद तक यह अप्रकाशित रहा। शरत स्वयं इसके प्रकाशन के लिए उत्साही नहीं थे, लेकिन 1917 ई. में इसके छपने के साथ ही व्यापक रूप से इसकी चर्चा शुरू हो गई थी। विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसके अनेक अनुवाद हुए। अनेक भारतीय भाषाओं में इस पर फ़िल्में बनीं। आख़िर ‘देवदास’ की इतनी लोकप्रियता के क्या कारण हैं? यह कृति क्यों कालजयी बन गई? असल में ‘देवदास’ सामन्ती ढाँचेवाले भारतीय समाज में घटित एक ऐसी प्रेमकथा है जिसमें गहरी संवेदनशीलता है। शरत ने उसे इतनी अन्तरंगता से लिखा है कि ‘देवदास’ की कहानी में सबको कहीं-न-कहीं अपनी ज़िन्दगी भी दिखाई दे जाती है। ‘देवदास’ भारतीय समाज-व्यवस्था की अनेक विसंगतियों पर एक कड़ी टिप्पणी भी है।
पत्रकार सुरेश शर्मा ने ‘देवदास’ की विस्तृत भूमिका में पहली बार इस कृति और उसके सर्जक शरतचन्द्र के बारे में अनेक नई जानकारियाँ दी हैं। यह भूमिका न सिर्फ़ इस कृति का नया मूल्यांकन करती है, बल्कि इस बात की भी तलाश करती है कि ‘देवदास’ की पारो और चन्द्रमुखी कौन थी? शरत को ये पात्र जीवन में कहाँ और कब मिले?—इन जानकारियों के साथ ‘देवदास’ को पढ़ना उसमें नया अर्थ पैदा करेगा।