Histiriya
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सविता पाठक के इस पहले कहानी संग्रह 'हिस्टीरिया' की सबसे अहम खासियत यह है कि इसमें स्त्रियों के विषय में फैलाए गए भ्रमों और मिथकों पर प्रहार किया गया है। लेखिका ने बहुत सोच-समझ कर थीम उठाई है। चाहे वह शीर्षक कथा 'हिस्टीरिया' हो अथवा 'अरजा तुम्हारी कौन है', 'गूलर का फूल' या 'अकेले ही'। सविता की एक और खासियत यह है कि उनके रचना-संसार में गाँव और शहर दोनों के चलचित्र हैं। खेत-खलिहान, तरु-पादप की छटाओं से लेकर अकेली लड़कियों के खजुराहो भ्रमण तक सब कुछ यहाँ अपने गतिशील स्वरूप में साँस लेता है।
ये कहानियाँ अपने लिए जरूरी रसायन स्मृतियों से जुटाती हैं। ये पाठकों की स्मृतियों का हिस्सा बनकर उन्हें दोबारा उस दुनिया में ले जाती हैं जिस पर तब उनका ध्यान जाना शायद इस तरह से सम्भव न हो सका हो। यहाँ पर स्त्रियों के दुख इतने सघन और दृश्यवान हैं कि इनके चरित्र अपनी कहानी खुद कहने लगते हैं।
अतिलेखन और अतिकथन के इस वाचाल समय में सविता पाठक की इन कहानियों का समुचित स्वागत होगा, शुभकामनाएँ।
—ममता कालिया