Khatarnak Yon Janit Rog Aur Aids
Ships in 4-7 Days
Free Shipping in India on orders above Rs. 500
Ships in 4-7 Days
Free Shipping in India on orders above Rs. 500
— प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक। रोगाणु के प्रवेश के औसतन 25 दिन बाद यौनांग पर अंडाकार फफोला बनता है। इसकी बाहरी सतह टूटने से यह एक छाले का रूप ले लेता है। छाले को प्राथमिक शैंकर भी कहते हैं। इससे ख़ून नहीं आता और सामान्य तौर पर दर्द भी नहीं होता। 95 प्रतिशत यौन रोगियों में घाव शिशन के ऊपर बनता है लेकिन समलिंगी रोगियों में यह गुदा के किनारे पर होता है। इसके अलावा यह होंठों अथवा जीभ पर भी हो सकता है। स्त्रियों में योनि द्वार के आसपास बनता है।
रोग की द्वितीयक अवस्था में 80 प्रतिशत मरीज़ों में त्वचा के रोग भी हो जाते हैं। कुछ मरीज़ों में यकृत, तिल्ली, मस्तिष्क की झिल्लियों में भी रोग फैल जाता है। इसके साथ ही बुख़ार, सिरदर्द, गले में दर्द इत्यादि लक्षण पैदा होते हैं।
पूरे शरीर की त्वचा में विभिन्न तरह की फुंसियाँ भी उभरती हैं। ये फुंसियाँ गुलाबी अथवा ताँबिया रंग की होती हैं। इनमें खुजलाहट नहीं होती। रोग की द्वितीयक अवस्था अधिक संक्रामक मानी जाती है। इस अवस्था में शरीर की प्रायः सभी लसिका ग्रन्थियों में सूजन आ जाती है।
रोग की तृतीयक अवस्था में शरीर के विभिन्न भागों पर ठोस गाँठों का निर्माण होता है जिन्हें गुम्मा कहते हैं। ये अनियमित आकार की होती हैं। तृतीयक सिफ़लिस पुरुष अथवा स्त्री के प्रायः सभी अंग संस्थानों में फैल जाती हैं उदाहरणार्थ—यह हृदय एवं रक्त वाहिकाओं, फेफड़ों, पाचन संस्थान, अस्थि तंत्र, तंत्रिका तंत्र इत्यादि को प्रभावित कर इनके कार्यों में बाधा उत्पन्न करती है, यहाँ तक कि रोगी पागल हो जाता है। उसको लकवा लग सकता है, उसकी हृदयगति रुक सकती है।
—इसी पुस्तक से