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Desh Sewa Ka Dhandha

by Vishnu Nagar
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Book cover type: Paperback
  • ISBN13: 9788126715633
  • Binding: Paperback
  • Subject: N/A
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Publisher Imprint: Rajkamal Prakashan
  • Publication Date:
  • Pages: 148
  • Original Price: INR 150.0
  • Language: Hindi
  • Edition: 2nd Ed.
  • Item Weight: 250 grams
  • BISAC Subject(s): General

विष्णु नागर ने एक कवि के अलावा ख़ुद को एक व्यंग्यकार के रूप में भी प्रतिष्ठित किया है। उन्होंने अपने समय को कविता, कहानी, निबन्ध, लेख, व्यंग्य आदि अनेक विधाओं में पकड़ने की कोशिश की है। दरअसल व्यंग्य उनका इतना सहज भाव है कि वह इन सभी विधाओं में बिखरा पड़ा है जिनमें उन्होंने रचनाएँ की हैं। अपने समय की तीखी राजनीतिक-सामाजिक विडम्बनाओं को उन्होंने इस पुस्तक में शामिल सभी व्यंग्यों के माध्यम से पकड़ा है। इनके व्यंग्य की यह विशेषता है कि इनमें एक निर्भीक भाव है। विष्णु नागर शब्दों का खेल करके व्यंग्य या हास्य पैदा करने की कोशिश नहीं करते। वह अपनी बात को स्पष्टता से कहते हैं, शायद इसी कारण ये व्यंग्य अपने समकालीन व्यंग्यकारों के व्यंग्यों से अलग नज़र आते हैं। इनमें कविता की कोमलता और करुणा भी है और कहानी का आख्यान भी। निबन्ध का लालित्य भी है और लेख की विचारशीलता भी। इनमें भाषा का विलक्षण रचाव और सधाव देखने को मिलता है। व्यंग्यकार किसी भी राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति को उसके विभिन्न आयामों में देखने की सतर्क सजग कोशिश करता है इसलिए ये व्यंग्य समकालीन स्थिति पर होकर भी महज़ समसामयिक बनकर नहीं रह गए हैं। इनमें अपने समय के क्रूर तथा नंगे यथार्थ का इतिहास और भूगोल दोनों मिलेंगे। ये व्यंग्य तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों के बारे में होकर भी चूँकि कोरे राजनीतिक-सामाजिक नहीं हैं, इसलिए राजनीतिक-सामाजिक यथार्थ का बाहरी स्वरूप किंचित् बदलने के बावजूद हम पाते हैं कि कुल मिलाकर यथार्थ अपने मूल आशय में वैसा ही आज भी है जैसा कि वह इन व्यंग्यों में दिखता है। विष्णु नागर उन व्यंग्यकारों में हैं जिन्होंने हरिशंकर परसाई, रघुवीर सहाय, बर्टोल्ट ब्रेख़्त आदि से सीखा है और उसे अपने ढंग से एक बिलकुल नया स्वरूप देने की कोशिश की है।

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