Vipanan Prabhandh
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प्रस्तुत पुस्तक के लेखन में यह तथ्य ध्यान में रखा गया है कि विपणन के अध्ययन में अब वैश्विक परिप्रेक्ष्य की प्रासंगिकता महत्त्वपूर्ण बन चुकी है। भारत में गत डेढ़ दशक से आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया जारी है। भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण हो रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था और भारतीय कम्पनियां निरन्तर स्वयं को वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं वैश्विक बाजार के अनुरूप ढाल रही हैं। यह पुस्तक इसी वास्तविकता को दर्शाती है। इसमें उन सभी विषयों को समाहित किया गया है जिसका ज्ञान एक सुयोग्य विपणन प्रबंधक को होना चाहिए। यह सर्वविदित एवं स्वीकार्य है कि विपणन प्रबंध का महत्त्व हर क्षेत्र एवं उपभोक्ता बाजार में बढ़ रहा है। यही कारण है कि विपणन प्रबंध के क्षेत्र में भी आये दिन नये-नये शोध, अनुसंधान एवं चर्चाएं हो रही हैं। इसके चलते यू.जी.सी. एवं विश्वविद्यालयों की पाठ्यक्रम निर्माण समितियां विपणन प्रबंध के पाठ्यक्रमों को नवीनतम एवं अद्योपांत रूप देने में जुटी हुई हैं। इस पुस्तक की विषय-सामग्री पर यदि दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि इसमें विपणन प्रबंध के विभिन्न आयामों को पांच खंडो में विभाजित कर कुल सत्रह अध्यायों में प्रस्तुत किया गया है। विपणन प्रबंध के कार्यों के अलावा इस पुस्तक में विपणन मिश्रण, बाजार विश्लेषण एवं चयन, क्रेता व्यवहार, उत्पाद जीवन चक्र एवं व्यूह रचना, नये उत्पादों के लिए नियोजन, कीमत निर्धारण एवं संवर्द्धनात्मक व्यूह रचना, विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय, विपणन अनुसंधान और विपणन में उभरते विशिष्ट क्षेत्रों से संबंधित जानकारियों, तथ्यों एवं आंकड़ों को नवीन दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक की सामग्री को अत्यंत सरल एवं बोधगम्यता के साथ प्रस्तुत करने का सकारात्मक प्रयास किया गया है। आशा की जानी चाहिए कि यह पुस्तक विपणन प्रबंध के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवर प्रबंधकों, विक्रयकर्त्ताओं, शोधकर्त्ताओं एवं जिज्ञासु पाठकों के लिये उपयोगी एवं संग्रहणीय साबित होगी।