Apne Bachchon ko Kaise Khilayen?: Aur Iska Lutf Lein
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अपने बच्चों को कैसे खिलायें? (और इसका लुत्फ़ लें) - यह पुस्तक शिशुकाल से लेकर, उनके धीरे-धीरे बड़े होने और स्कूल जाने की आयु तक वाले आपके बच्चों को पारम्परिक भारतीय पौष्टिक भोजन के विषय को लेकर लिखी गई है। हमारी दादी और माँ के द्वारा स्वाद और सेहत को ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाई गई सामग्री, खाना बनाने की तरह-तरह की विधियाँ और हमें प्रेम से खिलाना ही इस पुस्तक का मूल आधार है। आसानी से बनाये गये ये व्यंजन आपके बच्चों को बहुत पसंद आयेंगें, ऐसा मेरा विश्वास है। इसमें दिन-प्रतिदिन के सामान्य भोजन से कुछ अलग हटकर - रुचिकर सूप़, स्वादिष्ट शाकाहारी डिशेज़ और स्वास्थ्यप्रद स्नैक्स, नये-नये स्कूल टिफ़िन, त्यौहारों के खाने आदि अनेक व्यंजनों की विधियाँ दी गईं हैं। यह पुस्तक न केवल भारत में, अपितु विश्व में रहने वाली भारतीय माताओं के लिए भी बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। बच्चों को कैसे खिलायें (और इसका लुत्फ़ लें) ने आपकी माँ की रसोई की कल्पना को फिर से साकार कर दिया है। साथ ही आज की कामकाजी माताएं, जो अति व्यस्त होते हुए भी अपने बच्चे को पौष्टिक आहार देने का महव समझती हैं, यह पुस्तक उनके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। लेखिका के अपने दो बच्चों को बड़ा करने के अनुभवों पर आधारित इस पुस्तक के सभी व्यंजन कम समय में और सरलता से बनने वाले हैं। इस पुस्तक में खाने के पारम्परिक तरीकों के साथ साथ वैज्ञानिक जानकारी और आजकल के बच्चों की खाने के प्रति बदलती रुचियों को भी ध्यान में रखा गया है। A book that tells you everything about feeding your children, right from their baby days, through toddlerhood and as they go to school, in a way that is traditionally Indian, yet nutritionally sound. It keeps in view the changing tastes and preferences of today’s children.
डॉ. ताबिन्दा जे. बर्नी दो बेटियों की मां हैं। एक नौ और दूसरे पाँच वर्ष की है और वे लंदन में रहती है। वह पैदा नई दिल्ली, भारत में हुईं और उन्होंने लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा का अध्ययन किया और श्वसन चिकित्सा में विशेषता प्राप्त की। दिल्ली के कई प्रमुख अस्पतालों में काम करने के बाद, वह ब्रिटेन चली गईं जहाँ वह एक एनएचएस अस्पताल में काम करती हैं और अपने परिवार की देखभाल के लिए भी अपना समय निकाल लेती हैं। खासकर यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसके बच्चों को स्वस्थ खाना मिलें। वह बागवानी, यात्रा, पढ़ना और तैराकी का आनंद लेती हैं। उन्होंने उर्दू लघु कथा संग्रहों के लिए उपन्यास का अनुवाद भी किया है और चिकित्सा पत्रिकाओं के लिए कई अकादमिक पत्र प्रकाशित किए हैं। Translator मंजु खन्ना ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. (संस्कृत) एवं बी. लिब. किया है। वे 37 वर्षों तक भारत सरकार में कार्यरत रहने के साथ साथ 30 वर्षों से प्रकाशन जगत से भी जुड़ी रही हैं। Dr Tabinda J Burney is a mother of two girls, 9 and5 years of age and lives in London. She was born and brought up in New Delhi, India. She studied medicine at the Lady Hardinge Medical College and specialised in Respiratory Medicine. After having worked in several major hospitals in Delhi, she moved to UK where she works in a NHS hospital and divides her time between work and looking after her family, especially ensuring that her husband and children eat healthily. She enjoys gardening, travelling, reading and swimming. She has previously translated fiction for Urdu short story anthologies and published several academic papers for medical journals.