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Istanbul Ka tulip

by Iskandar Pala;
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Book cover type: Paperback
  • ISBN13: 9788119626915
  • Binding: Paperback
  • Subject: N/A
  • Publisher: Niyogi Books
  • Publisher Imprint: NiyogiBook
  • Publication Date:
  • Pages: 396
  • Original Price: INR 495.0
  • Language: English
  • Edition: N/A
  • Item Weight: 424 grams
  • BISAC Subject(s): N/A

इस्तांबुल का किस्सा– एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जो कला, सौंदर्यशास्त्र, कल्पना की सुंदरता और भव्यता के परिप्रेक्ष्य में तुर्क साम्राज्य के सबसे शानदार कल को दर्शाता है। यह आर्थिक और सामाजिक पतन का, फिजूलखर्ची और बर्बादी का समय था, यह भी बतलाता है। ट्यूलिप युग के रूप में जाना जाने वाला यह काल, 1730 में उस महान जन विद्रोह का साक्षी बना, जिसने तुर्की के भाग्य की दिशा ही पलट दी। उपन्यास का आरंभ एक ऐसे युवक के किस्से से होता है, जिसकी सुहागरात को ही उसकी सुंदर पत्नी की हत्या कर दी जाती है। इससे भी ज़्यादा विचित्र बात यह है कि उस निरपराध युवक को अपनी ही पत्नी की हत्या के आरोप में कैद करके जेल में डाल दिया जाता है। अपनी बेगुनाही साबित करने और अपनी पत्नी के हत्यारे को खोजने के लिए, उसका एकमात्र सुराग एक ट्यूलिप का बल्ब है, जो उसे अपनी मृत पत्नी की हथेली में मिला था। युवक अपनी असली पहचान से अनजान है कि–वह एक शहज़ादा है, एक सुल्तान का बेटा, जो महल के बाहर पला-बढ़ा है। राजसी सत्ता के घेरे में उसकी मौजूदगी की अफवाह को लेकर बाद में एक षड्यंत्र रचा जाता है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विवरणों के ताने–बाने से बुना यह किस्सा, पाठकों को राजसी महलों और दरवेशों के आवासों के आतंरिक जीवन की झलक दिखाता है! साथ ही ट्यूलिप की खास किस्मों को उगाने के बागवानी रहस्यों को भी उजागर करता है। यह मानसिक चिकित्सालय में मनोरोगियों के अभिनव उपचारों, जेल के विविध यातना उपकरणों, असंतुष्ट क्रांतिकारियों और अपराधियों द्वारा कॉफी हाउसों तथा हमामों में रचे गए षड्यंत्रों से भी परिचित कराता है। जब पूरी दुनिया तुर्क साम्राज्य की सैन्य, राजनीतिक और कलात्मक उपलब्धियों से अत्यंत प्रभावित थी, इस्कैंदर पाला ने उस दौर के इस्तांबुल के वैभव और दुराचारों का बेहद मोहक चित्रण किया है। About the author: इस्कैंदर पाला का जन्म 1958 में उशाक में हुआ था और उन्होंने 1979 में इस्तांबुल विश्वविद्यालय के साहित्य संकाय से अपनी स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। उन्होंने 1983 में इसी विश्वविद्यालय से उस्मानी तुर्की दीवान साहित्य में डॉक्टरेट की उपधि भी प्राप्त की। उनकी लघु कथाओं, निबंधों, सैद्धांतिक लेखों और समाचर-पत्रो के स्तंभों ने उनके पाठको को दीवन साहित्य को एक नई दृष्टि से देखने की प्रेरणा दी। वह तुर्की लेखक संघ पुरस्कार (1989), तुर्की भाषा प्रतिष्ठान पुरस्कार (1990) और तुर्की लेखक संघ निबंध पुरस्कार (1996) प्राप्त कर चुके हैंI उशाक में लोकमत से उन्हे ‘द पीपल्स पोएट या लोक कवि की उपाधि प्रदान की गई। उनकी किताबें ‘डेथ इन बेबीलोन, ‘लव इन इस्तांबुल, ‘द ट्यूलिप ऑफ़ इस्तांबुल, ‘द किंग एंड द सुल्तान और ‘ओड एंड मिहमानदार ने कई साहित्यिक पुरस्कार जीते हैं, और इनके पाठकों की संख्या वृहत है। उनकी साहित्यिक सफलता के सम्मान में उन्हें 2013 में राष्ट्रपति संस्कृति और कला महत पुरस्काार प्रदान किया गया। इस्कैंदर पाला विवाहित हैं और उनके तीन बच्चे हैंI वह चुल्चुर विश्वविद्यालय में अध्यापक हैंI

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