Pratigya
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"प्रेमचंद का उपन्यास प्रतिज्ञा भारतीय समाज की गहराई में छिपे नैतिकता, सुधारवाद और स्त्री-उत्थान जैसे विषयों पर आधारित है। इस कहानी के मुख्य पात्र अमृतराय और पूर्णा हैं। अमृतराय एक आदर्शवादी युवक है जो समाज में व्याप्त रूढ़िवादी धारणाओं और परंपराओं के खिलाफ हैं। वे विधवा पुनर्विवाह जैसे सुधारवादी विचारों के पक्षधर हैं और समाज में इन विचारों को फैलाकर सामाजिक बदलाव लाना चाहता है। पूर्णा एक विधवा महिला है जो समाज की कठोर और अमानवीय परंपराओं के खिलाफ अपने स्वाभिमान और गरिमा को बनाए रखते हुए संघर्ष करती है। उपन्यास के अन्य पात्र जैसे सुशीला और माँ अन्नपूर्णा समाज के विभिन्न दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
प्रेमचंद ने इस उपन्यास के माध्यम से भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़ियों और सामाजिक अन्याय को चुनौती दी है। यह कहानी न केवल एक भावनात्मक यात्रा है बल्कि समाज को बदलने के लिए व्यक्तिगत प्रयासों और साहस की प्रेरणा भी देती है।"
मुंशी प्रेमचंद हिंदी के एक महान लेखक और उपन्यासकार थे, जिन्हें "उपन्यास सम्राट" के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास लामही गाँव में हुआ। प्रेमचंद का वास्तविक नाम ध्नपत राय श्रीवास्तव था। उन्होंने समाज की कुरीतियों,आर्थिक असमानता,जातिवाद और शोषण को अपनी रचनाओं में प्रमुखता से उकेरा। प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों और कहानियों के माध्यम से समाज में सुधार और जागरूकता लाने का प्रयास किया। उनके प्रमुख उपन्यासों में गोदान, गबन, सेवासदन, निर्मला, प्रतिज्ञा और कायाकल्प शामिल हैं। उनकी कहानियाँ जैसे पूस की रात, ईदगाह और नमक का दरोगा मानवीय संवेदनाओं और यथार्थ का अद्भुत चित्रण करती हैं।
उन्होंने साहित्य को एक नया दृष्टिकोण दिया और उसे आम जनमानस से जोड़ा। 8 अक्टूबर 1936 को उनका निध्न हो गया लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं।