
Madhyakaalin Bharat ka Itihaas (MULTI VOL SET-4 Vols.)
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इस कृति में मध्यकालीन भारत की छः शताब्दी (आठवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी ) में हुये क्रमिक परिवर्तनों के अन्तर्गत संपत्तिगत संबंधों के स्वरूप 'नेचर आफ प्रापर्टी रिलेशन्स), जागीरदारी व्यवस्था और म्राम समुदाय (विलेज कम्युनिटी) की कार्यप्रणाली और समकालीन सामाजिक संबंधों को उजागर करने का प्रयास किया गया है। कृषि-संबंधों के नवीन स्वरूप के कारण शहरीकरण (अर्बनाइजेशन) की प्रक्रिया पर भी प्रकाश डाला गया है; इस शहरीकरण की प्रक्रिया को गतिमान बनाने में दिल्ली सल्तनत के योगदान को भी स्पष्ट किया गया है। इतिहास समस्त सामाजिक विज्ञानों का “आलेखागार' है; इस दृष्टि से इतिहास ने विभिन्न सामाजिक विज्ञानों के बीच को विभाजन रेखाओं को मिटाने में अप्रतिम योगदान दिया है, इस प्रकार के ऐतिहासिक अध्ययन ने मानवीय विकास को स्पष्ट किया है। प्रस्तुत पुस्तक में इसी आधुनिक ऐतिहासिक दृष्टिकोण का अनुसरण किया गया है इसके अतिरिक्त प्रस्तावित अध्ययन काल से संबंधित लगभग समस्त पक्षों-राजनीति और राजतंत्र, राज्य एवं धर्म आर्थिक एवं तकनीकी विकास, धार्मिक-सामाजिक आंदोलन के क्रमिक बिन्दु,. सांस्कृतिक प्रगति एवं तत्कालीन ऐतिहासिक लेखन आदि सभी विषयों का यथासंभव संतुलित विवेचन का प्रयास इस कृति में निहित है।