
Samaj Manovigyan
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यह पुस्तक विश्लेषणात्मक पद्धति से लिखी गई है अतः प्रत्येक विषय पर प्रत्येक प्वाइन्ट को काले अक्षरों में देकर यथा-सम्भव अलग पैराग्राफ में वर्णन किया गया है। विषय को उपस्थित करने की विश्लेषणात्मक पद्धति के साथ-साथ विषय के विवेचन में रचनात्मक समालोचना की विधि अपनाई गई है। विवादास्पद विषयों पर निष्कर्ष देने में लेखक का दृष्टिकोण सर्वांग रहा है। सर्वांग दृष्टिकोण में किसी भी मत को असत्य न कहकर उसके सत्य के पक्ष पर जोर दिया जाता है और उसके खंडन के स्थान पर उसकी सीमायें दिखाने की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है। जहां तक प्रयोग-सिद्ध बातों का प्रश्न है उनमें नवीनतम प्रयोगों के परिणाम ही अन्तिम निष्कर्ष हैं। लेखक ने प्रत्येक विषय के विवेचन में यथासंभव नवीनतम सामग्री देने का प्रयास किया है। लेखक ने इस पुस्तक को अपनी ओर से स्नातकोत्तर कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए एक आदर्श पाठ्य पुस्तक बनाने की चेष्टा की है। पुस्तक में जहाँ पाठ्यक्रम के किसी भी विषय को छोड़ा नहीं गया है, वहां प्रत्येक का वर्णन प्रथम श्रेणी के स्तर से करने की चेष्टा की गई है। चार्टों, तालिकाओं और चित्रें से पुस्तक को अधिकाधिक सुबोध बनाने की चेष्टा की गई है।
डॉ. राजेन्द्र कुमार शर्मा एम.ए., एम.फिल., पी-एच.डी., यू.जी.सी. रिसर्च फैलो, पी.एच.डी.; आजीवन सदस्य इण्डियन सोशियोलाजिक सोसाइटी, उत्तर प्रदेश समाजशास्त्र परिषद एवं उत्तर प्रदेश दर्शन परिषद। भारतीय विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर कक्षाओं की समाजशास्त्र विषय पढ़ाने के अपने अनुभव के आधार पर डॉ. शर्मा ने समाजशास्त्र विषय में दर्जनों पुस्तकों एवं शोध-पत्रें की रचना की है। आपकी रचनायें हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपकी रचनाओं का विद्यार्थियों और शिक्षकों सभी ने स्वागत किया है। डॉ. रचना शर्मा एम.ए. (मनोविज्ञान) प्रथम श्रेणी एवं विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान, भारतीय मनोविज्ञान में उल्लेखनीय शोध-कार्य किया है। आपके शोध-पत्र अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आप मनोविज्ञान विषय में विश्वविद्यालय स्तर की अनेक पुस्तकों की लेखिका हैं।